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शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

हर हर गंगे! जय जय गंगे!


हों दर्शन तेरे हर प्रभात 
ऐसा हि भाग्य हो मेरा मात 
माँ मन हो तुम सा निर्मल
मैं बनू तुम्हारी धारों सा...
मैं भी बहूँ कल कल .
मैं भी बनू चंचल..
हर हर गंगे जय जय गंगे!

तू मोक्ष दायिनी जगतमात
सानिध्य तुम्हारा हो सदा साथ 
स्नान, दान, पूजा, तर्पण
मैं नित्य करूँ तेरे हि घाट..
तू करती उद्धार हर पापी का 
आते पापी पुण्यी सब एक साथ  
हर हर गंगे! जय जय गंगे!

अन्नदाता माँ तेरे दोनों पाट
तू बुझाती है माँ सबके प्यास
खुले हुए माँ तेरे दोनों  हांथ 
हम कर रहे दोहन तेरा शोषण
कर रहा हूँ तुझ पर कुठाराघात
फिर भी तुझे पूजूं पाने को आशीर्वाद 
हर हर गंगे! जय जय गंगे!

तू सबको करती है माँ पवित्र..
असन्तुष्ट, दुष्ट कर रहे तुझे गंदा
कुछ बेचते रेत,  माटी तेरा
कुछ करते तेरे जल का धंधा..
मेरे अहोभाग्य,
मेरी जन्म भूमि माँ तेरे पास.
हर हर गंगे! जय जय गंगे!

कुछ ने बाँध बना कर बाँधा तुम्हे 
कुछ पुल बना कर भूल गए 
जो नगर तुम से फुले फले,
उन्ही ने बांधे तेरे गले 
पर तू भी मानव स्वार्थ को समझ गयी 
मेरे बस्ती से भी माँ अब तू कोशो दूर गयी  
हर हर गंगे! जय जय गंगे!
हर हर गंगे! जय जय गंगे!





25 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे अहोभाग्य,
    मेरी जन्म भूमि माँ तेरे पास.
    हर हर गंगे! जय जय गंगे!

    बहुत उम्दा प्रस्तुति व् माँ गंगा की स्तुति.....
    चन्दन भैया, मुझे तो आपके ब्लॉग के बारे में आज ही पता लगा.....
    बहुत-बहुत बढ़िया है....बधाई...

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  2. अन्नदाता माँ तेरे दोनों पाट
    तू बुझाती है माँ सबके प्यास

    बहुत सुंदर ....गंगा मैया को नमन ...

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...देवसरिता गंगा माता को नमन|

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  4. हर हर गंगे!
    हर हर गंगे!

    सुंदर भावों उक्त कविता.

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  5. प्रिय बंधुवर चन्दन भारत जी
    सस्नेहाभिवादन !

    गंगा मइया की बहुत सुंदर स्तुति आपने सामयिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत की है -
    अन्नदाता मां तेरे दोनों पाट
    तू बुझाती है मां सबकी प्यास
    खुले हुए मां तेरे दोनों हांथ
    हम कर रहे दोहन तेरा शोषण
    कर रहा हूं तुझ पर कुठाराघात
    फिर भी तुझे पूजूं पाने को आशीर्वाद
    हर हर गंगे! जय जय गंगे!

    तू सबको करती है मां पवित्र
    असन्तुष्ट, दुष्ट कर रहे तुझे गंदा
    कुछ बेचते रेत, माटी तेरी
    कुछ करते तेरे जल का धंधा
    मेरे अहोभाग्य,
    मेरी जन्मभूमि मां तेरे पास
    हर हर गंगे! जय जय गंगे!


    पूरे हृदय से बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  6. हर हर गंगे! जय जय गंगे!
    बहुत सुन्दर!

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  7. जय हो गंगा मैया| बहुत ही सूक्ष्म चित्रण..शब्द और अलंकारिक भाषा का अच्छा प्रयोग किया है| बहुत खूब चन्दन जी|

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  8. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. बहुत ही सुन्दर वंदना ...चन्दन जी /

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  10. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) जी मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार!

    रोली पाठक दीदी आपको बहुत बहुत धन्यवाद!आशा हि आपका आगमन निरंतर होता रहेगा|

    मनोज कुमार जी, डॉ मोनिका शर्मा जी,ऋता शेखर 'मधु' जी, सागर जी, चंद्रभूषण गाफिल साहब, सुनीता शर्मा जी, दीपक बाबा जी, मदन शर्मा जी,S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') जी,Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार जी,Smart Indian - स्मार्ट इंडियन जी, मानस खत्री जी, अनुपमा पाठक जी, किलर झपाटा जी, बबन पाण्डेय जी आप सबों के उत्साहवर्धन, और मार्गदर्शन से हि कुछ सुधार हो सकेगा| मार्गदर्शन भी कराते रहिएगा| धन्यवाद!सादर!

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  11. गंगा मैया पर बहुत ही सुन्दर कविता रची है आपने!

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  12. भावमय करते शब्‍दों का संगम है आपकी यह अभिव्‍यक्ति बधाई के साथ शुभकामनाएं ।

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  13. सदा जी, राजभाषा हिंदी जी आभार!

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  14. यूँ तो पूरी रचना ही सुन्दर है पर माँ गंगा की पीड़ा कहती ये पंक्तिया मन को झकझोर देती है
    तू सबको करती है माँ पवित्र..
    असन्तुष्ट, दुष्ट कर रहे तुझे गंदा
    कुछ बेचते रेत, माटी तेरा
    कुछ करते तेरे जल का धंधा..
    मेरे अहोभाग्य,
    मेरी जन्म भूमि माँ तेरे पास.
    हर हर गंगे! जय जय गंगे!
    चन्दन जी विशेष आभार जो व्यस्तताओ से समय निकल कर इस साहित्य यात्रा पर आये. इश्वर आपकी साहित्य यात्रा हमेशा जारी रक्खे

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  15. .

    आज आपके ब्लौग पर अचानक आना हुआ , ...फिर आपके ब्लौग पर झपाटा द्वारा उसकी अभद्र पोस्ट का विज्ञापन देखा .....आपने उसकी अभद्रता का आभार ज्ञापित किया है. ....शर्मनाक है..

    आप एक अच्छे कवि हैं ...गंगा माँ पर अच्छी कविता लिखी है लेकिन हो सके तो बहन -बेटियों का अपमान करने वालों को पहचानना सीखिए और अभद्र और अश्लील टिप्पणीकारों का बहिष्कार कीजिये. ...aapka ब्लौग एक pavitr sthal है.... yahaan gandagi को sthaanm mat dijiye

    .

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  16. मैंने भी इस किलर झपटे कि गलतियों को नोटिस किया था और उसे मेल भी किया था...उसकी इस अभद्रता के लिए हाँ उसकी टिप्पणी को मिटा नही पाया हूँ और आभार में उसका नाम गलती से सम्मिलित हो गया है जील जी आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ|

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  17. मेरे अहोभाग्य,
    मेरी जन्म भूमि माँ तेरे पास.
    हर हर गंगे! जय जय गंगे!
    बहुत सुंदर रचना है माँ गंगा की स्तुति....

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